दहकते अंगारों पर चलने से कम नहीं है आधुनिक परिपेक्ष में पत्रकारिता करना

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अररिया के पत्रकार विमल कुमार की हत्या क्या मंगलराज का उदाहरण है?

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राजेश मिश्रा

औरंगाबाद।अररिया के पत्रकार विमल कुमार की हत्या की खबर जैसे ही सुना बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गया। दिन प्रतिदिन पत्रकारों पर हो रहे हमले इस बात के संकेत है। कि आधुनिक परिपेक्ष में दहकते अंगारों पर चलने जैसा है पत्रकारिता करना हो गया क्योंकि पत्रकार का दायित्व होता है कि आसपास में हो रहे भ्रष्टाचार सामाजिक कार्य आसपास में घटने वाली घटनाओं को खबरों के माध्यम से आम जनों के बीच निष्पक्ष रूप से रखने का और ऐसा करते भी है।

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लेकिन उन्हें यह पता नहीं होता कि उनके द्वारा किए गए खुलासे से अनगिनत रूप से दुश्मन भी तैयार हो जाते हैं। क्योंकि अपराधी किस्म के लोगों को मालूम होता है कि किए गए खुलासे से उनकी परेशानी बढ़ेगी, और वें ऐसा हर हाल में होने नहीं देना चाहते और अपराधियों द्वारा पत्रकरो क़ी हत्या कर दी जाती है। यह बहुत ही निंदनीय है।

यह तो सबको मालूम है कि अपराधी गिरफ्तार भी हो जाएंगे और कुछ दिन बाद जमानत पर रिहा भी हो जाएंगे। लेकिन जिनका सुहाग उजड़ गया उन्हें कौन देखेगा। यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है। भले ही मुख्यमंत्री जीरो टॉलरेंस के नाम पर अपनी पीठ थपथपा ले। मगर अपराध का ग्राफ काफी बढ़ा है और इससे इंकार नहीं किया जा सकता।

अपराधियों का मनोबल बढ़ा हुआ है और यही कारण है कि वह खुलेआम गवाहों को धमकाते हैं। जिसके कारण बहुत लोग अदालत में जाकर गवाही नहीं दे पाते। लेकिन जो अपराधियों से विरोध में जाकर काम करते हैं उनका हश्र वही होता है जो पत्रकार के साथ हुआ।

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