बिहार सरकार द्वारा लोक आस्था का महापर्व के अवसर पर औरंगाबाद जिले का देव छठ मेला को राजकीय मेला घोषित किया जा रहा है , सत्तारूढ़ दल के एक प्रवक्ता के माध्यम से समाचार पत्रों में खबर भी छपी है , उसके अनुसार राशि आवंटन भी किया जा चुका है । जिलाप्रशासन द्वारा मेला उदघाटन को लेकर परंपरा अनुसार आमंत्रण पत्र छपवा कर वितरण किया जा रहा है , आमंत्रण पत्र पर उद्घाटनकर्ता के रूप में प्रभारी मंत्री आलोक कुमार मेहता का छपी है । इसके पूर्व में ऐसे सरकारी आयोजनो में नियमन के अनुरूप स्थानीय जनप्रतिनिधियों का नाम होता है ।
किंतु इस आमंत्रण पत्र में स्थानीय सांसद सुशील कुमार सिंह , क्षेत्रीय विधायक आनंद शंकर , स्थानीय विधानपार्षद दिलीप कुमार सिंह , पूर्व सभापति सह विधान पार्षद अवधेश नारायण सिंह , विधानपार्षद जीवन कुमार , सहित जिले के सभी विधानसभा के सम्मानित विधायक , जिलापरिषद अध्यक्ष , नगर पंचायत अध्यक्ष का नाम नही होना सरकार के अहंकार और असंवैधानिक परंपरा का द्योतक है । एक तरफ यह सरकार खुद को लोकतंत्र के हिमायती बतलाती है , संविधान के रहनुमा का दम्भ भरती रही है ।
सरकार को यह बतलाना चाहिये कि यह किस संविधान के तहत स्थानीय जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा किया गया ? क्या जनता के द्वारा चुने हुये जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा से कौन सा लोकतंत्र स्थापित करना चाहते ? इस सरकार को अब लोकतंत्र और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से कोई मतलब नही है , सरकार भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबी हुई है , सरकार का जन संवाद कार्यक्रम में जिला प्रशासन खुद की पीठ थपथपा रही है , किसी प्रतिनिधियों को उसमे नही बुलाना और केंद्र प्रायोजित योजनाओं को खुद की योजना बता कर जनता को दिग्भ्रमित किया जा रहा ।
जिला प्रशासन सरकारी एजेंट के रूप में सत्ता के इशारे पर जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा कर रही राज्य में अब सरकार का भरोषा संविधान और संवैधानिक परंपरा में नही है । यह सरकार खुद संविधान की हत्या पर तुली हुयी है । सरकार के निर्देश के तहत जिला प्रशासन लोकतंत्र का मजाक उड़ा रही । जनता के द्वारा चुने हुये प्रतिनिधियों का अपमान बर्दाश्त नही किया जायेगा । देव कार्तिक छठ मेला 2023 का उद्घाटन के आमंत्रण पत्र में में स्थानीय जनप्रतिनिधियों का नाम दर्ज नही किया जाना घोर निदनीय है ।