मगही भाषा को संविधान के 8वीं अनुसूची में गई शामिल करने की मांग
औरंगाबाद।जनेश्वर विकास केंद्र एवं साहित्य संवाद के संयुक्त तत्वाधान में स्थानीय श्री कृष्णा सिंह स्मृति भवन में 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस समारोह पूर्वक आयोजित किया गया। उक्त समारोह लेखक एवं संपादक डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र की अध्यक्षता में संपन्न हुआ।
संस्था के सचिव सिद्धेश्वर विद्यार्थी ने बताया कि कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि मगध यूनिवर्सिटी हिंदी के विभागाध्यक्ष डा भरत सिंह, प्रगतिशील मगही समाज बिहार महामंत्री राम सि़ंहासन सिंह , साहित्य महापरिषद गया के महामंत्री राजीव रंजन ,कवि कुमार कांत ,डॉ रामरेश यादव ,डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र , शिवनारायण सिंह द्वारा दीप प्रज्वलित कर संयुक्त रुप से किया गया। जनेश्वर विकास केंद्र अध्यक्ष रामजी सिंह और संयोजक लालदेव प्रसाद के द्वारा अतिथियों को अंग वस्त्रमृ एवं पुष्पमाला देकर सम्मानित किया गया ।
प्रथम सत्र में डा राजेंद्र प्रसाद सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘भ्रमर गीत का सौन्दर्यशास्त्रीय अनुशीलन ‘
का लोकार्पण आगत अतिथियों द्वारा किया गया । इसके बाद लेखक राजेंद्र प्रसाद सिंह ने विषय प्रवेश के माध्यम से अपनी पुस्तक एवं उसकी लेखन प्रक्रिया में होने वाले अनुभवों को साझा किया। मंचस्थ अतिथियों ने विरह गीत परंपरा एवं इसके साहित्यिक अवदानों पर सम्यक प्रकाश डाला।
दूसरे सत्र में “मगही भाषा का हलई, अब का हो गेलइ “बिषय पर संगोष्ठी की शुरुआत की गई,जिसका विषय- प्रवेश शिक्षक रमेश कुमार सिंह ने कराते हुए कहा कि मगही भाषा का इतिहास गौरवशाली रहा है।
परन्तु वर्तमान में इसके लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। मुख्य अतिथि तथा मगही भाषा विद्बान डा भरत सिंह ने कहा कि मगही भाषा दुनिया की सबसे सरल एवं मधुर भाषा है । यह भाषा कभी मौर्य साम्राज्य की राजभाषा हुआ करती थी । बोल चाल एवं काम काज की यही प्रमुख भाषा था । परन्तु आजकल मगही भाषा भाषी लोग ही इसे उपेक्षा कर रहे हैं । इसे पुनः गौरवशाली जगह दिलाने हेतु मगध के लोगों को ही आगे आना होगा।
राम सिंहासन सिंह,राजीव रंजन ,कुमार कांत, रामरेश यादव ने भ्रमर गीत के लेखक की प्रशंसा करते हुए लेखन के क्षेत्र में यशस्वी होने की कामना की। इसके साथ ही सबों ने मगही भाषा के विकास के लिए बुद्धिजीवियों को प्रतिबद्ध होने हेतु आह्वाहन किया । पत्रकार एवं अधिवक्ता प्रेमेन्द्र कुमार मिश्र, ज्योतिर्विद शिवनारायण सिंह, कवि रामकिशोर सिंह, प्रो दिनेश प्रसाद ने विश्व मातृभाषा दिवस के इतिहास को बताया और कहा कि मगध वासियों को संकल्प लेना चाहिए कि मगही भाषा को बोलचाल की भाषा बनायेंगे
इसे संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल कराने हेतु संघर्ष किये जाने की आवश्यकता बताई गयी। अंत में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डा सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि मातृभाषा का उत्थान और संवर्धन का अर्थ अपनी लोक संस्कृति और अपनी अस्मिता का संवर्धन होता है।
पुनः मगही भाषा के विकास के लिए अनवरत काम करने वाले डा रामाधार सिंह, डा शिवपूजन सिंह, संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य सुरजीत सिंह,कवि लवकुश प्रसाद सिंह, श्रीराम पाठक, डा सुमन लता, कवि कालिका प्रसाद सिंह, को माला और अंगवस्त्र से सम्मानित किया गया। अंत में आगत अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापन साहित्य संवाद के संयोजक लालदेव प्रसाद ने किया । समारोह में सत्यचंडी महोत्सव के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद, शिक्षक बैद्यनाथ सिंह, अरुण कुमार सिंह, पुलिस पदाधिकारी सिंहेश्वर सिंह, रसिक बिहारी सिंह, जन विकास परिषद के पूर्व सचिव रामचंद्र सिंह सहित सैकड़ों लोग थे।