औरंगाबाद। देव और उमगा जिले के दो क्षेत्र है दोनो के मध्य के क्षेत्र ही देव उमगा राजवंश कहा जाता था। मूल रूप से सिसौदिया राजपूतो का राजवंश है।
राजस्थान के उदयपुर राज के अंतर्गत प्रथम श्रेणी ठिकाना कानोड के राव राजा रावत भान सिह के वंशज है। रावत भान सिह महाराणा प्रताप सिंह के प्रमुख सेनापति थे जिन्होंने मेवाड़ की र क्षा सन् 1576ई से सन् 1615 ई तक रहा। मुगलो के सभी युध्द मे इनका नेतृत्व रहा। अपने मेवाड़ की रक्षा की। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद 18 साल की उम्र मे नियुक्ति हूए थे।
सिसौदिया राजपूतो मे 24 प्रमुख परिवार रहे है जो मूलतः महाराणा लक्ष्य सिह ( लाखा) के वशंज है। महाराणा लाखा के आठ पुत्र हूए जिनमे चुण्डा जी हुए। उनसे कनिष्ठ भ्राता अज्जा जी के वशंज राव भान सिह थे। जिनको सारंगदेवोत सिसौदिया परिवार कहा जाता। देव उमगा का राजवंश सारंगदेवोत सिसौदिया परिवार का हिस्सा है।
मगध के मध्यकालीन इतिहास और आधुनिक इतिहास के महत्वपूर्ण अध्याय मे देव उमगा राजवंश का विरासत है। वशंवली विरासत और इतिहास का संक्षिप्त विवरण होता।
वर्तमान मे आदर्श ग्राम योजना के प्रावधान अतंर्गत सांसकृतिक विरासत संरक्षण मे वशंवली को संरक्षित करने का कार्य किया गया है। 1500 सालो के मेवाड़ और देव उमगा के वशं विवरण लगभग 72 पीढ़ी का संकलन है। देव उमगा का संक्षिप्त इतिहास का भी संकलन है।
आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्याम नारायण सिंह, मारकण्डे सिंह, बलदेव सिंह, हरि नारायण सिंह, अनुग्रह नारायण सिंह, श्री प्रदीप सिंह, जसवन्त सिंह, सतेन्द्र सिंह, संजीव सिंह, दिलीप सिंह, मकसूदधन सिंह, ऋषि सिंह सरपंच, सतेन्द्र सिंह ( वकील साहब), शंकर सिंह, अजय सिंह, विनय सिंह, विरेन्द्र सिंह, दिगविजय सिंह, पंकज सिंह, रोशन सिंह, प्रफुल्ल सिंह सिसौदिया (बेरी), अभिषेक सिह मुख्य संकलन एवं शोधकर्ता, प्रदीप सिंह (गढ़ बनिया) रहे।