औरंगाबाद। जाड़े की रात कितनी कष्टदायक होती है। अगर आप को इसका हाल जानना हो तो रात को शहर की सड़कों पर निकल जाइए। खुले आसमान के नीचे ठंड में ठिठुरते लोगों को देख कर आप सिहर उठेंगे। औरंगाबाद शहर में सैकड़ों ऐसे गरीब हैं, जिनकी रात फुटपाथ पर कटती है। सर्द हवा जब शरीर में लगती है, तो लोग सिकुड़ कर पैर और सीना एक कर लेते हैं।
इनके लिए राहत की कोई व्यवस्था नहीं है। शहर में रात होते ही फुटपाथ गरीबों का बिस्तर बन जाता है। शहर के समाहरणालय के बाहर रमेश चौक, महाराजगंज रोड, ब्लाक मोड़, धर्मशाला मोड़, महाराणा प्रताप, दानी बिगहा बस स्टैंड के पास गरीब सड़कों पर सो रहे हैं। मेहनत-मजदूरी करने के बाद मजदूर फुटपाथ पर रात बिताते हैं।
बड़े-बड़े अधिकारियों की गाड़ियां इस रास्ते से गुजरती है।पर कोई देखने व पूछने वाला नहीं है। ठंड के साथ इन लोगों को दुर्घटना का भी खतरा बना रहता है। ठंड बढ़ने के बाद भी शहर में अब तक देख घरों के लिए रैन बसेरा नहीं खुला है। रैन बसेरा न होने के कारण लोग बेघर हो रहे हैं। शहर के समाजसेवी सह कांग्रेस नेता मो. शाहनवाज रहमान उर्फ सल्लू खान ने स्वयं रात में सल्लू खान ने डीएम से मांग करते हुए कहा है कि गरीब एवं निसहाय व्यक्तियों की शीतलहर से सुरक्षा के लिए रैन बसेरों / अस्थायी शरण स्थलों की व्यवस्था कराई जाए।
शहरी क्षेत्रों में रिक्शा चालकों, दैनिक मजदूरों, दूरों, असहायों, आवास विहीनों एवं सदृश्य श्रेणी के गरीब, निसहाय व्यक्तियों के रहने हेतु रैन बसेरों की समुचित व्यवस्था की जाए। जहां रैन बसेरे उपलब्ध न हों, वहां जिले में उपलब्ध पालीथिन शीट्स, टेंट, तारपोलीन शीट्स का उपयोग कर आवश्यकतानुसार अस्थायी शरण स्थली बनायी जाए। रैन बसेरों एवं अस्थाई शरण स्थलों में पर्याप्त संख्या में कंबल रखे जाएं। रैन बसेरों एवं अस्थाई शरण स्थलों में सुरक्षा मानकों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाय।
जिन्होंने सर्द रातों में फुटपाथ पर ठिठुरते मेहनतकशों के बदन पर जब कंबल डाला तो उन्हें सहसा विश्वास नहीं हुआ कि आज के जमाने में ऐसे लोग भी हो सकते हैं जिन्हें दूसरों की परिस्थितियों का एहसास होता है। युवा समाजसेवी सल्लू खान ने मुख्यालय के प्रमुख चौराहों रेन बसेरों में कंबल वितरण कर सर्दी में ठिठुरते गरीबों असहायों के चेहरे पर मुस्कान ला दी।
सल्लू खान ने कंबल वितरण कर खुले आसमां के नीचे रात गुजारते गरीबों को यह एहसास दिलाया कि समाज में मानवता ख़त्म नहीं हुई है और आज भी समाज में एक दूसरे के मदद के लिए तत्पर है।