ये तल्ख टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश सूर्यकांत ने बिहार के एक मुखिया के आपराधिक मुकदमे के सुनवाई के दौरान की।जिस बिहार के बदौलत भारत कभी विश्वगुरु होने का दावा करता था,जो बिहार आजतक नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के खंडहरों को देख इतराता फिरता है उस बिहार को माननीय न्यायाधीश की इस टिप्पणी ने आईना दिखा दिया। हालांकि मैं इस टिप्पणी का समर्थन नहीं करता पर इसने मेरे जैसे करोड़ों बिहारियों को अंदर रख हिलाकर रख दिया है।
इस टिप्पणी ने वर्ष 1997 में पटना हाईकोट की उस टिप्पणी की याद दिला दी जब माननीय न्यायालय ने लालू-राबड़ी के शासनकाल की तुलना जंगलराज से की थी। अब हमलोगों को सोचना होगा कि क्या इन 28 वर्षों बाद भी बिहार वहीं खड़ा है? बिहार के विकास की बातें बेमानी हैं? क्या जंगल राज से सुशासन राज तक कुछ नहीं बदला? ऐसे कई सवाल हैं जो फिर खड़े हो गए हैं।
इस तल्ख टिप्पणी के बाद बिहार के राजनीतिज्ञों में अगर नैतिकता बची है तो क्या उन्हें अपने अपने पदों से त्यागपत्र नहीं दे देना चाहिए? यह एक बहुत बड़ा सवाल है जिसे हर बिहारी को हर एक पार्टी के नेता से पूछना चाहिए।साथ ही साथ हमें इस बात पर दुबारा सोचने की जरूरत है कि अब तक हम जिन लोगों को अपना जन प्रतिनिधि चुनकर शासन का बागडोर थमाते रहे है क्या सही में वो
लोग इस लायक थे कि हमारा नेतृत्व कर सके या फिर आजतक तक हम चोरों को ही थानेदार बनाते रहे हैं।यह एक गम्भीर मामला है अगर हम जात-पात की भावना से ऊपर उठकर अपना जन प्रतिनिधि अभी भी नहीं चुने तो याद रखिएगा बिहार के बाहर बिहारियों को रहना मुश्किल हो जाएगा और ये अपराधी प्रवृत्ति के नेता बिहार को रहने के लायक नहीं छोड़ेंगे। ऐसी स्थिति में बेकसूर और बेगुनाह लोग कहां जाएंगे क्या करेंगे यह एक गम्भीर सवाल है?क्या उनकी स्थिति रोहंगिया मुसलमानों जैसी नहीं हो जाएगी??
एक बात तो बिल्कुल ही समझ से परे है कि एक तरफ तो बिहार केंद्र से विशेष राज्य के दर्जे की मांग करता है और दूसरी तरफ जब ED और सीबीआई के छापे किसी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी के घर पड़ते है तो करोड़ों रुपए कैश मिलते हैं अब बताइए जब घरों में करोड़ों करोड़ रूपए कैश में पड़े है उसके बाद भी विशेष राज्य के दर्जे की मांग करना तो सिर्फ जनता की आंखों में धूल झोंकना जैसा ही है ना।और ये हालत तो सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की है
अगर कभी ED और सीबीआई मंत्रियों के यहां छापे मार दे तो ये संख्या करोड़ों से भी आगे बढ़ जाएगी । झारखंड वाले सांसद धीरज साहू और मंत्री आलमगीर आलम को आपलोग अभी भूले नहीं होंगे।झारखंड तो हमारा छोटा भाई है तब ये स्थिति थी तो बड़े भाई के घर में कितना माल पड़ा होगा सोचिए?? ये तो ED और सीबीआई बिहार के मंत्रियों पर अहसान कर रही है कि उनके घरों को नहीं खंगाल रही है।
एक शेर है ” *एक ही उल्लू काफी है बर्बाद ए गुलिस्तां करने को*,
*यहां हर डाल पे उल्लू बैठा है अंजाम ए गुलिस्ता क्या होगा* ।
तो मेरे बिहार के बेकसूर भाइयों बहनों का कब तक दूसरे की पाप की गठरी अपने सिर पर ढोते रहेंगे?? *खेत खाए गदहा, जोलहा पीटा ता* ये गाना कब तक हमारी सच्चाई बयान करती रहेगी।इसलिए अब सब कुछ बदलने का समय आ गया है। जाति पाति की संकीर्ण भावना से ऊपर उठिए और बिहार को बचाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर परिवर्तन का साक्षी बनाए ,*जनसुराज* के रूप में अवसर आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही है जो बदलाव का एक नया दरवाजा आपके लिए खोलेगी।
एक ऐसा बिहार बनाएगी जिसे ED और सीबीआई का डर नहीं होगा, जिस पर कोई भी कोर्ट अपमानजनक टिप्पणी नहीं करेगा।और बिहार को पुनः उसके गौरवशाली दौर में वापस लाएगा जिसके कारण भारत विश्वगुरु समझा जाता था ।तब हमे सिर्फ विश्वविद्याल के खंडहरों पर ही गर्व करने की जरूरत नहीं रह जाएगी बल्कि वर्तमान भी हमारा गर्व और स्वाभिमान का विषय बनेगा।इसलिए बनाए बिहार,बदले बिहार।
प्रो अनिल कुमार सिंह औरंगाबाद