विश्व हिंदी दिवस पर साहित्यिक संध्या कार्यक्रम आयोजित

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औरंगाबाद।जिला मुख्यालय के सत्येंद्र नगर स्थित सच्चिदानंद सिन्हा महाविद्यालय के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर डॉ शिवपूजन सिंह के आवास पर औरंगाबाद जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन एवं समकालीन जवाबदेही परिवार के संयुक्त तत्त्वावधान में विश्व हिंदी दिवस के मौके पर साहित्यिक संध्या का आयोजन किया गया।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर शिवपूजन सिंह तथा संचालन उक्त संस्था के महामंत्री धनंजय जयपुरी द्वारा किया गया। संरक्षक मंडल सदस्य प्रो रामाधार सिंह ने कहा कि हिंदी को विश्व स्तर पर स्थापित करने में जिन साहित्यसेवियों ने अपनी अहम भूमिका का निर्वहण किया उनके द्वारा कृत कार्यों से प्रेरणा लेकर हमें अबाध गति से इसकी उन्नति के लिए तत्पर रहने की जरूरत है।

सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि हिंदी को सुदृढ़ बनाने के लिए बोलचाल की भाषा में दुरूह शब्दों के बजाय सरल शब्दों का प्रयोग अपेक्षित है, जिससे जन सामान्य इसके उच्चारण में जटिलता महसूस न करे। संचालन के क्रम में धनंजय जयपुरी ने अंग्रेजी के प्रति लोगों के बढ़ते रुझान एवं हिंदी के प्रति उदासीनता पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा- *”सिंहासन पर बैठकर अंग्रेजी मुस्काए, बैठ देहरी रो रही देखो हिंदी माय। देखो हिंदी माय सोच निज दशा बिचारी, बच्चों को है आज माय से मम्मी प्यारी।।*

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समकालीन जवाबदेही पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि मुझे खुशी है कि हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा के रुप में प्रतिष्ठित है। परंतु अत्यंत खुशी तब होगी जब यह प्रथम स्थान पर प्रतिष्ठा प्राप्त कर ले। डॉ रामाधार सिंह ने कहा कि हिंदी अपने ही देश में गुलामी का दंश झेल रही है। हमें इसके विकास के लिए अहर्निश प्रयत्नशील रहना चाहिए।

भारत सरकार को चाहिए कि वह हिंदी को राजभाषा के बदले राष्ट्रभाषा का दर्जा दे। अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ शिवपूजन सिंह ने कहा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए हमें हरसंभव कोशिश करनी चाहिए क्योंकि देश के विकास के लिए अपनी भाषा की सुदृढ़ता परम आवश्यक है।

डॉ संजय कुमार सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन के क्रम में कहा कि देश की स्वतंत्रता के 75 वर्षों बाद भी भाषाई रूप से हम आज भी गुलाम हैं और जब तक हम अपनी भाषा को सुदृढ़ नहीं कर लेते, देश के समुचित विकास की परिकल्पना बेमानी होगी।

उक्त कार्यक्रम में पुरुषोत्तम पाठक, सिंहेश सिंह , नागेंद्र केसरी, अनुज बेचैन, विनय मामूली बुद्धि इत्यादि ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किये।

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