गया जिले में शुक्रवार को मगध विश्वविधालय, बोधगया के प्राचीन भारतीय एवं एशियाई अध्ययन विभाग एवं बौद्ध अध्ययन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। “भारतीय इतिहास-लेखन : चुनौतियाँ एवं सम्भावनाएँ” विषय पर व्याख्यान देने के लिए बनारस हिन्दू विश्वविधालय में कार्यरत
भारतीय-इतिहास लेखन के विशेषज्ञ प्रोफेसर डाॅ डीके ओझा को आमंत्रित किया गया। प्राचीन भारतीय एवं एशियाई अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ सत्येन्द्र कुमार सिन्हा ने प्रोफेसर ओझा को पुष्पगुच्छ देकर सम्मानित किया । व्याख्यान प्रारम्भ करते हुए प्रो ओझा ने भारतीय इतिहास-लेखन की परम्परा को कालक्रमानुसार दर्शाते हुए इतिहास-लेखन से जुड़े हुए विवादों के बारे में विस्तृत
जानकारी दी। उन्होंने इतिहास विषय की उपयोगिता और उसके महत्व के बारे में भी जानकारी देते हुए बताया कि इतिहास एक गंभीर विषय है, जो तर्कसंगत और वैज्ञानिक अवधारणाओं पर आधारित है। उन्होंने बताया कि एक इतिहासकार अतीत और वर्तमान के बीच निरंतर संवाद कायम करने का काम करता है,
जिससे समाज को समझने और उचित मार्गदर्शन में सहयोग मिलता है। प्रो ओझा ने प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व तथा इतिहास विषय के वर्तमान पीढ़ी के इतिहासकारों तथा नवनियुक्त शिक्षकों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि इतिहास-लेखन तथ्यपरक और गहन शोधपरक एवं वैज्ञानिक होना चाहिए। साथ ही कहा कि इतिहास के किसी भी शाखा की ऐसी व्याख्या नहीं करनी चाहिए जो समाज को दिग्भ्रमित करता हो।
इस विशेष व्याख्यान के अध्यक्षीय संबोधन में बौध अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो गौतम सिन्हा ने कहा कि कोई भी इतिहास-लेखन पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए, क्योंकि इतिहास से प्रेरणा लेकर ही हम एक आदर्श समाज का निर्माण कर सकते हैं।
इस व्याख्यान कार्यक्रम में प्राचीन भारतीय एवं एशियाई अध्ययन विभाग, बौद्ध अध्ययन विभाग तथा इतिहास विभाग सहित अन्य विभागों के शिक्षकगण एवं विधार्थी उपस्थित हुए। इस कार्यक्रम का संचालन सहायक प्राध्यापक डाॅ अनूप कुमार भारद्वाज ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डाॅ विजयकांत यादव द्वारा करते हुए कार्यक्रम सम्पन्न किया गया ।