मगध विश्वविद्यालय में धर्म संस्कृति संगम पर एक दिवसीय संगोष्ठी आयोजित

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विश्विद्यालय अपने पुरातन गौरव की ओर है अग्रसर: कुलपति

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गया।मगध विश्विद्यालय, बोधगया में शिक्षा विभाग के राधाकृष्णन सभागार में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया I जिसकी अध्यक्षता मगध विश्विद्यालय, बोधगया के कुलपति प्रो एसपी शाही ने की। मुख्य वक्ता डॉ इंद्रेश कुमार जी तथा विशिष्ट अतिथि माननीय केंद्रीय मंत्री, कोयला एवं खान राज्य, भारत सरकार सतीश चंद्र दुबे जी एवं माननीय मंत्री, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति

कल्याण, बिहार सरकार उपस्थित हुए। इस अवसर पर सभी आगत अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, अंग वस्त्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया । कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलित एवं कुलगीत से हुआ।आगत अतिथियों का स्वागत भाषण एवं अध्यक्षीय भाषण में कुलपति प्रो एसपी शाही ने मगध विश्विद्यालय का भौगोलिक एवं शैक्षणिक परिचय कराते हुए विश्विद्यालय के वर्तमान परिस्थिति से अवगत कराया और कहा कि विश्विद्यालय अपने पुरातन

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गौरव की ओर कैसे अग्रसर है।संगोष्ठी में अपने अभिभाषण में वक्ता भंते शील रत्न ने कहा कि आपसी संवाद से भेदभाव समाप्त किया जा सकता है, मगध मोक्ष की धरती है । प्रधान मंत्री जी द्वारा पाली भाषा को शास्त्रीय दर्जा देने का महान कार्य किया गया है जो भारत को विश्व गुरु बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। स्वामी विवेकानंद गिरि जी ने कहा कि राष्ट्रवाद के विभिन्न मतों पर प्रकाश डाला। भारतीय राष्ट्रवाद, वैश्विक राष्ट्रवाद से भिन्न है। करुणा, प्रेम,

दया और आत्मीय सहयोग से ही राष्ट्रवाद का जन्म होता है। राष्ट्र हमारा सनातक एवं स्थायी है।वहीं विशिष्ट अतिथि एवं माननीय मंत्री श्री जनक राम जी ने कहा कि राष्ट्र के सशक्तिकरण से ही वैश्विक पहचान हासिल की जा सकती है। निजी हितों के ऊपर राष्ट्रहित को महत्व दिया जाना राष्ट्रवाद को अखण्ड एवं मजबूत बनाता है।केंद्रीय मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने कहा कि भारत में अंग्रेज, मुगल आए और देश को विभाजित करके चलें गए। प्रयास सफलता की कुंजी है।

भारत को अखण्ड राज्य के रूप में स्थापित करने का प्रयास जारी हैI प्रधान मंत्री जी के सपने आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप उन्मुख भारत एवं विकसित भारत साकार होते नजर आ रहे हैं। प्रधान मंत्री जी के सपने को भारत को साकार करने हेतु प्रत्येक व्यक्ति को मिल प्रयास करना होगा। मुख्य वक्ता डॉ इंद्रेश कुमार जी ने संगोष्ठी में अपने अभिभाषण में कहा कि मातृभाषा का जन्म कैसे होता है? मातृभाषा का वैज्ञानिक आधार माँ को गोद से मातृभाषा का जन्म होता है। तर्क से विज्ञान और विश्वास से भगवान का मार्ग

प्रशस्त होता है। विविधता में एकता का मूलमंत्र भारतीय संस्कृति में निहित है। वैश्विक स्तर पर संस्कृत एवं हिंदी के प्रति हीनता उत्पन्न किया गया। हिन्दी हीनतावाद एवं अँग्रेजी विकासवाद बन गया। बहुभाषी भारत संबाद कर सकता है और इससे वैश्विक हिंसा विभेद, दासता से मुक्त भी होगा। जातीय जनगणना का उदेश्य देश को जाति के आधार पर बाटना नहीं है सिर्फ वोट बैंक नहीं, इससे देश को जोड़ने के लिए है। भारत ने अन्य देशों की मध्यस्थता को नकारा।

आने वाले समय में प्रेम बढ़ेगा, लड़ाई कम होगी। वासना,धोखे को प्रेम मत दो।राष्ट्र प्रेम भारत के निर्माण का मुख्य आधार है। अपने भाषा, जाति और धर्म से प्रेम करो पर दूसरे से घृणा मत करो। अंत मे कार्यक्रम राष्ट्रगान के समाप्त हुई। संगोष्ठी में बहुत अधिक संख्या में शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मचारियों एवं विद्यार्थीयों की उपस्थिति देखी गई।

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