गया मगध विश्वविधालय, बोधगया अन्तर्गत प्राचीन भारतीय एवं एशियाई अध्ययन विभाग, द्वारा वैश्विक संगोष्ठी का समापन समारोह आयोजित दो दिवसीय “मगध-थाइलैंड शेयर्ड सोशियो-कल्चरल, हिस्टोरिक, रिलिजीयस, लिग्नीसटीक एंड आर्ट फार्म्स का भव्य समापन समारोह किया गया। दूसरे दिन के कार्यक्रम में भी देश-विदेश के विभिन्न विद्वानों द्वारा व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। ग्लोबल सेमीनार का समापन समारोह की अध्यक्षता मगध विश्वविद्यालय कुलानुशासक, प्रोo उपेन्द्र कुमार ने की ।
उन्होंने संबोधन में कहा कि मगध विश्वविद्यालय में इतने उच्च स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन हमारी संस्था की गुणवत्ता को दर्शाता है तथा माननीय कुलपति प्रोo शशि प्रताप शाही की प्रशांश करते हुए बताया की भविष्य में इसी तरह के क्रयक्रम भी हों। इस समारोह के मुख्य अतिथि भारत सरकार के पूर्व वित्तीय सलाहकार श्री जयंत मिश्रा थे मगध की भूमि पर इस प्रकार के आंतरराष्ट्रीय विद्वानों के उपस्थिति में आसियान एवं बिमसटेक देशों के प्रतिनिधियों की भागीदारी के साथ विद्वत संगोष्ठी का आयोजन किया जाना गर्व की बात बतलाया । बतौर वक्ता एवं सम्मानित अतिथि के रूप में वर्ल्ड
बुद्धिस्ट कल्चरल फाउंडेशन के अध्यक्ष भंते दीपानकर सुमेधो ने बुद्ध के विचारों को कला एवं पुरातत्व के माध्यम से उसके सही इतिहास को जनमानस तक पँहुचाने की बात कही जबकि अकादमिक सत्र का समापन दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) आनंद सिंह के ज्ञानवर्धक एवं गहन शोधपूर्ण विशिष्ट व्याख्यान से हुई । उनके व्याख्यान ने भारत और थाईलैंड के बीच सभ्यतागत एवं ऐतिहासिक निरंतरता का कुशलतापूर्वक पता लगाया, जिसमें बौद्ध धर्म के संचरण, समुद्री व्यापार और सांस्कृतिक
प्रतीकवाद पर विशेष ध्यान दिया गया। उन्होंने थेरवाद बौद्ध धर्म के स्रोत एवं आध्यात्मिक केंद्र के रूप में मगध की केंद्रीयता पर जोर दिया, जिसने थाईलैंड में समृद्ध एवं अनुकूलित वातावरण बनाया।विदित हो कि पूर्वाहन के सत्र में कुल एक दर्जन वक्ताओं ने अपने-अपने विषयगत शोधों पर विचारों की अंतर्दृष्टि और विषयनिष्ठ विंदुओं पर गहरी विवेचना की। उनके चर्चाओं से समृद्ध और अंतःविषय आदान-प्रदान हुआ, जो भारत और थाईलैंड के बीच गहन और समय-सम्मानित सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाता है।
डॉ. बच्चन कुमार (आईजीएनसीए, नई दिल्ली) ने थाईलैंड पर विशेष ध्यान देते हुए दक्षिण-पूर्व एशिया के भारतीयकरण में मगध की भूमिका पर एक सम्मोहक पेपर प्रस्तुत किया। उन्होंने इस क्षेत्र में भारत के प्रारंभिक सांस्कृतिक प्रभाव का समर्थन करने वाले पुरातात्विक एवं साहित्यिक साक्ष्यों पर प्रकाश डाला। कलकत्ता यूनिवर्सिटी की डॉ. कराबी मित्रा द्वारा भारत और प्राचीन थाईलैंड के बीच संपर्क की एक अंतर्दृष्टिपूर्ण खोज की, जिसमें पुरालेखीय एवं मुद्राशास्त्रीय दोनों स्रोतों से सांस्कृतिक संपर्क एवं राजनीतिक कूटनीति के मार्गों का मानचित्रण किया गया। श्री शंकर शर्मा ने बोधगया में महाबोधि मंदिर और चियांग माई में वाट चेत योट में
महाचेदी का तुलनात्मक वास्तुशिल्प विश्लेषण प्रस्तुत किया, जिसमें साझा प्रतीकात्मक तत्वों को किस प्रकार से थायलैंड के भूक्षेत्र में ऐतिहासिक काल में प्रभाव एवं फैलाव हुआ था । बौद्ध सांस्कृतिक फाउंडेशन के अध्यक्ष भंते दीपांकर सुमेधो ने थेरवाद बौद्ध धर्म पर एक विद्वतापूर्ण प्रस्तुति दी, जिसमें भारत में इसके विकास और थाईलैंड में इसकी जीवंत निरंतरता पर चर्चा की गई। नई दिल्ली और पांडिचेरी का प्रतिनिधित्व करते हुए उनकी दोहरी उपस्थिति ने सत्र में एक मूल्यवान आध्यात्मिक आयाम जोड़ा। डॉ. कुणाल किशोर ने प्राचीन मगध और थाईलैंड के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों पर हिंदी में अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया, जिसमें दिखाया
गया कि कैसे भाषा और धार्मिक अभिव्यक्तियाँ यात्रा करती हैं और बदलती हैं। डॉ. जनमेजय सिंह और श्री लोलिम्ब राज मिश्रा द्वारा “मगध से मुआंग थाई तक” शीर्षक से एक संयुक्त प्रस्तुति में भारत से थाईलैंड तक हिंदू धार्मिक संस्कृति के प्रसार और परिवर्तन की खोज की गई, जिसमें प्रतीकात्मक और अनुष्ठान निरंतरता पर जोर दिया गया।
इन दो दिवसीय शैक्षणिक सत्र ने इतिहास, पुरातत्व, वास्तुकला, राजनीति विज्ञान, भूगोल और धार्मिक अध्ययनों के विद्वानों को एक साथ लाया – विविध दृष्टिकोणों के साथ संवाद को समृद्ध किया। क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आयाम: प्रस्तुतियों में स्थानीय इतिहास (मगध) से लेकर अखिल एशियाई सांस्कृतिक प्रतिमानों तक का संतुलित दृष्टिकोण परिलक्षित हुआ, जो थाईलैंड में भारतीय प्रभाव की स्थायी विरासत को दर्शाता है।निष्कर्षत: इस शैक्षणिक सत्र ने इस बात की पुष्टि की कि भारत-थाईलैंड संबंध केवल कूटनीतिक या आर्थिक नहीं हैं, बल्कि गहराई से सभ्यतागत हैं। साझा वास्तुशिल्प रूपांकनों से लेकर धार्मिक दर्शन तक, पवित्र भूगोल से लेकर
कलात्मक अभिव्यक्तियों तक – ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्तेदारी जीवंत है और निरंतर अकादमिक ध्यान देने योग्य है।कार्यक्रम के अंत में ग्लोबल सेमीनार के संयोजक एवं सचिव डॉo विनोद कुमार यादवेंदु द्वारा इस दो दिवसीय सेमीनार के सफल आयोजन किए जाने पर सभी को बधाई ज्ञापित करते हुए इसकार्यक्रम को सफल बनाने में उत्तरदायित्व निभाने वाले विभाग के सहकर्मी शिक्षकों को धन्यवाद दिया। विभिन्न देशों जिसमें वियतनाम, इण्डोनेशिया, थायलैंड, कंबोडिया से भाग लेने वाले विद्वानों ने इस प्रकार के कार्यक्रम को भविष्य में भी करने की जरूरत बतलाया ताकि बुद्ध की भूमि से संबंध बना रहे ।इस कार्यक्रम में
सहयोग देने वाले प्राचीन इतिहास विभाग विभाग के सभी शिक्षकों डॉ अलाका मिश्रा, डॉo जन्मेजय सिंह, डॉo अनूप भारद्वाज, डॉo विजयकान्त यादव, डॉ. चंद्र प्रकाश एवं आलोक रंजन सहित विद्यार्थियों की बड़ी भूमिका रही। कार्यक्रम का संचालन सहायक प्रोफेसर डॉo मीनाक्षी एवं डॉo दिव्या मिश्रा द्वारा सुंदर ढंग से सम्पन्न किया गया।