योग मानवीय ब्यवहारों की सबसे विकसित और सबसे मूल्यवान अभिव्यक्ति है,आचार्य दिव्यचेतनानंद

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राजेश मिश्रा 

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मगध विश्वविद्यालय बोधगया के दर्शनशास्त्र विभाग के सेमिनार हॉल में “श्रीश्रीआनंदमूर्तिजी के दर्शन के तीन पहलू- आध्यात्मिक दर्शन, नव्यमानवतावाद और सामाजिक आर्थिक सिद्धांत” विषय पर एक दिवसीय विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। आचार्य दिव्यचेतनानंद अवधूत, केंद्रीय जनसंपर्क सचिव, आनंद मार्ग प्रचारक संघ, कोलकाता मुख्य वक्ता थे।कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर गौतम कुमार सिन्हा ,अध्यक्ष बौद्ध अध्ययन विभाग ने की।

विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर जावेद अंजुम ने विषय प्रवेश कराया। मगध विश्वविद्यालय बोधगया के दर्शनशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. शैलेंद्र कुमार सिंह और डॉ. प्रियंका तिवारी ने कार्यक्रम का आयोजन किया। आचार्य दिव्यचेतनानंद अवधूत ने श्रीश्रीआनंदमूर्तिजी के दर्शनशास्त्र के तीन पहलुओं की व्याख्या की।

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उन्होंने कहा कि जब मनुष्य ने उस परम सत्ता की खोज में, उस परम आनंद की खोज में अपना आंदोलन शुरू किया, तो मनुष्य सबसे पहले अध्यात्म के संपर्क में आया और जैसे-जैसे अध्यात्म अनंत के संपर्क में आता है, यानि सीमित अनंत के संपर्क में आता है, उसे योग कहा जाता है। अब जहाँ प्रारंभिक बिंदु सौंदर्य स्वाद या सौंदर्य विज्ञान है, वहाँ चरम बिंदु से परम आकर्षण की गति शुरू होती है और आत्मा के साथ इस आंदोलन में, परम आकर्षण के लक्ष्य के साथ, मनुष्य उस परम सत्ता के साथ एक हो जाता है, जिसका आसन मानव अस्तित्व के शिखर से ऊपर है।

योग मानवीय ब्यवहारों की सबसे विकसित और सबसे मूल्यवान अभिव्यक्ति है, इसलिए यह योग का पहला चरण है कि व्यक्ति इतनी सारी कलाओं और विज्ञानों के माध्यम से खुद को अभिव्यक्त करता है, क्योंकि सभी कलात्मक आंदोलनों का अंतिम बिंदु और सभी विज्ञानों का भी अंतिम बिंदु सर्वोच्च स्रोत है, नव्यमानताववाद अतीत का मानवतावाद है, वर्तमान का मानवतावाद है, और मानवतावाद – नव व्याख्या – भविष्य का है।

मानवता और मानवतावाद को नए दृष्टिकोण से समझाने से मानव प्रगति का मार्ग विस्तृत होगा और उस पर चलना आसान होगा। नव्यमानवतावाद नई प्रेरणा देगा और मानव अस्तित्व के विचार को नई व्याख्या प्रदान करेगा। यह लोगों को यह समझने में मदद करेगा कि इस निर्मित ब्रह्मांड में सबसे विचारशील और बुद्धिमान प्राणी के रूप में मनुष्य को पूरे ब्रह्मांड की देखभाल करने की महान जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी, यह स्वीकार करना होगा कि पूरे ब्रह्मांड की महान जिम्मेदारी उस पर है।

तो फिर, मानवतावाद की नई व्याख्या और नए उपदेश नव्यमानताववाद है, वह दर्शन जो लोगों को यह समझाएगा कि वे केवल साधारण प्राणी नहीं हैं। यह दर्शन उन्हें सभी हीन भावनाओं और दोषों से मुक्त करेगा और उन्हें अपने स्वयं के महत्व का एहसास कराएगा। यह उन्हें एक नई दुनिया बनाने के लिए प्रेरित करेगा। उन्होंने आगे नवमानववाद के तीन लक्ष्यों की भी व्याख्या की- एक पंथ के रूप में आध्यात्मिकता, सिद्धांत के रुप मे आध्यामिकता और एक मिशन के रूप में आध्यात्मिकता।

आचार्य जी ने सामाजिक आर्थिक सिद्धांत में श्री श्री आनंदमूर्ति जी के योगदान पर भी प्रकाश डाला, जिसे प्रगतिशील उपयोगा सिद्धांत यानि प्रउत के रूप में भी जाना जाता है। कार्यक्रम में दर्शनशास्त्र समेत विभिन्न विभागों के छात्रों की उपस्थिति रही/और सबने इस ज्ञानवर्धक कार्यक्रम का लाभ उठाया।

कार्यक्रम में पाली विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर संजय कुमार, प्रोफेसर कृष्ण देव वर्मा, प्रो शाहिद रिजवी, प्रो ममता मेहरा, प्रो एकता वर्मा, संस्कृत विभाग अध्यक्ष प्रो उमेश राय,डॉ बागेश् ,समेत अन्य विभागों के प्राध्यापक और शोधार्थी उपस्थित थे।

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