मगध विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय एवं एशियाई अध्ययन विभाग के प्राध्यापकों, सहायक प्राध्यापकों एवं पुरातत्वविदों की टीम द्वारा दिनांक 31 अगस्त, 2024 को जहानावाद जिले में स्थित ऐतिहासिक स्थल बराबर का पुरातात्विक सर्वेक्षण एवं शैक्षणिक भ्रमण किया गया।
सर्वेक्षण कार्य का नेतृत्व विभागाध्यक्ष डॉ. सत्येन्द्र कुमार सिन्हा तथा वरीय प्राध्यापक प्रो० सुशील कुमार सिंह द्वारा किया गया | पुरे टीम द्वारा बराबर पहाड़ पर स्थित प्राचीन गुफाओं का सर्वेक्षण किया और बताया गया कि ये विश्व में सबसे प्राचीनतम मानव निर्मित गुफाएं है जिन्हें मौर्यकाल में निर्मित किया गया था।
ग्रेनाईट पत्थर से निर्मित इन गुफाओं को मौर्यकाल की उसी विशेष तकनीक द्वारा तरास कर चिकना और चमकदार बनाया गया है जिस तरह मौर्य सम्राट अशोक के स्तंभों को बनाया गया था इन गुफाओं पर भी प्राचीन अभिलेख खुदे हुए हैं जिससे जानकारी मिलती है कि इन गुफाओं का निर्माण लगभग 2500 वर्ष पूर्व मौर्य राजाओं द्वारा आजीवक साधकों के लिए साधना करने हेतु बनाया गया था।
विभाग की टीम द्वारा सभी गुफाओं यथा, सुदामा गुफा, लोमस ऋषि गुफा तथा कर्ण चौपर गुफा का गहनतापूर्वक अन्वेषण करते हुए बताया गया कि प्राचीनकाल की उत्कृष्ट तकनीक एवं वास्तुकला से निर्मित ये गुफाएं पुरे विश्व की धरोहर है जिसे यूनेस्को (UNESCO) की विश्व विरासत की सूची में शामिल किया जाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि पुरातात्विक धरोहर के बारे में अभी भी बहुत शोध किये जाने की आवश्यकता है जिससे प्रमाणिक इतिहास प्रकाश में आएगा | साथ ही इस धरोहर की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा गया कि इस दुर्लभ पुरातात्विक स्मारक की सुरक्षा एवं संरक्षण हेतु राज्य सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा कोई प्रयास नहीं किये जा रहे है इस अतुलनीय धरोहर के आस-पास कचरे और गंदगी फैली हुई है जो अपने गौरवशाली अतीत के प्रति निरादर और वर्तमान की अकर्मण्यता को दर्शाता है।
इसके लिए राज्य सरकार या जिला प्रशासन द्वारा कोई व्यवस्था नहीं है गुफाओं के भीतर दरारे पड़ने से बारिस के पानी का रिसाव होने लगा है जिससे भीतरी दीवारों में क्षरण हो रहा है गुफाओं के प्रवेश द्वार पर प्राचीन लिपि में लेख खुदे हुए हैं जिसके संरक्षण हेतु भी कोई प्रयास भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा नहीं किये गए।
जिससे ये आनेवाले पीढ़ियों के लिए सुरक्षित नहीं रह पायेंगे राज्य सरकार द्वारा इस विश्वस्तरीय धरोहर को पर्यटन के रूप में विकसित करने हेतु कोई प्रयास नहीं किया गया है जबकि इसी पहाड़ के शिखर पर स्थित बाबा सिद्धेश्वरनाथ मंदिर हेतु कई तरह की व्यवस्था की गई है।
बताया गया कि विभाग की टीम द्वारा सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से आग्रह किया जाएगा कि इस उत्कृष्ट पुरातात्विक धरोहर की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पर्याप्त व्यवस्था किया जाय ताकि भविष्य में आनेवाली पीढ़ियों के लिए गौरवशाली अतीत के इस स्मारक को बचाया जा सके।