औरंगाबाद। गोह जिला परिषद क्षेत्र संख्या 6 के जिप प्रतिनिधि श्याम सुंदर ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर भाकपा माओवादी के शीर्षस्थ नेता विजय आर्या की गिरफ्तारी पर कई सवाल खड़ा किया है। विज्ञप्ति के माध्यम से उन्होंने बताया कि आदर्श केंद्रीय कारा, बेऊर (पटना) में अशांति फैलाने, प्रतिबंधित सामान का सेवन व मोबाइल का उपयोग करने के आरोप में विजय कुमार आर्य को जेल प्रशासन रातों रात केंद्रीय कारा, बक्सर भेज दिया। इस बात की जानकारी अखबार में छपी खबर से हमें मिली।
आश्चर्य हुआ। जहां तक मुझे जानकारी है विजय कुमार आर्य माओवादियों के गांधी माने जाते हैं। यह उनकी तीसरी गिरफ्तारी है। गिरफ्तारी के वक्त पुलिस जो जब्ती सूची तैयार करती है। उसके मुताबिक ना तो उनके पास से हथियार की बरामदगी होती है और ना ही लेवी के पैसे समेत अन्य आपत्तिजनक सामानों की। जो व्यक्ति सामंतवाद विरोधी आंदोलन के अगुआ दस्ते में रहते हुए भी संदिग्ध आपत्तिजनक सामानों का उपयोग ना करता हो, उस व्यक्ति पर जेल में प्रतिबंधित सामानों के उपयोग का आरोप लगता हो, यह समझ से परे है।
विजय कुमार आर्य अहिंसक आंदोलन की ताकत जानते हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों व संवैधानिक मर्यादा को समझते हैं। तभी तीन दिन पहले ही जेल में फैले अव्यवस्था के खिलाफ कोर्ट को जानकारी देकर वह आमरण अनशन पर बैठे थे। उन्होंने आशंका भी व्यक्त किया था कि हो सकता है आमरण अनशन से घबराकर जेल प्रशासन मुझे सेल में फिर राज्य के दूसरे जेल में डाल दे!
…और यही हुआ भी। विजय कुमार आर्य के आमरण अनशन को 24 घंटे भी जेल प्रशासन बर्दाश्त नहीं कर सका। हड़बड़ी इस कदर कि जेल प्रशासन भूल गया कि विजय कुमार आर्य न्यायिक हिरासत में बंद हैं। उनकी हर गतिविधि की जानकारी कोर्ट को दिया जाना चाहिए। बिना कोर्ट को बताये दूसरे जेल में भेजना अपराध की श्रेणी में आता है। तब तो सड़क दुर्घटना का हवाला देकर उनकी हत्या भी की जा सकती है! जेल गेट से बाहर निकालकर गोली भी मार दी जा सकती है! जेल के अंदर खाने में जहर देकर उनकी हत्या को आत्महत्या करार दिया जा सकता है!
बहरहाल, प्रशासन ने आरोप लगाया है कि वह प्रतिबिंबित सामान का सेवन करते थे और मोबाइल का उपयोग करते थे। जेल में अशांति फैलने की आशंका थी। सवाल है कि जेल में प्रतिबंधित सामान पहुंचता कैसे है? मेन गेट से लेकर वार्ड और सेल तक सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। पुलिस का कड़ा पहरा होता है। फिर भी प्रतिबंधित सामान (मोबाइल समेत अन्य) बंदियों तक पहुंच कैसे रहा है? क्या अपने हक-अधिकार और जेल मैन्युअल की मांग को लेकर आमरण अनशन करना अशांति फैलाना है?जेल प्रशासन इतना ही संवेदनशील है तो बंदियों को भूख हड़ताल करने की नौबत क्यों आ रही है? जिम्मेवार कौन है विजय आर्य या फिर जेल प्रशासन! जेल प्रशासन के आरोप की जांच हाईकोर्ट के सिटिंग जज से कराई जानी चाहिए।
बहरहाल, विजय कुमार आर्य का गुनाह क्या है? कोर्ट कहता है justice delayed, justice denied. (देर से मिला न्याय, अन्याय की श्रेणी में आता है) इसके पहले भी आठ वर्षों तक सरकार उनको जेल में रखी। साक्ष्य के अभाव में कोर्ट ने बरी किया। इस बार भी भरोसा है कोर्ट उन्हें बरी करेगा। तंग चाहे जितना भी करना है विजय आर्य को, सरकार कर ले। इससे सच की आवाज नहीं दबाई जा सकती। इस बाबत जल्द ही माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार से मिलने का प्रयास करूंगा। पूरे मामले की न्यायिक जांच के लिए मानवाधिकार आयोग के साथ ही हाईकोर्ट से भी गुहार लगाऊंगा।